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I want you to take a look at: कोमन्वेल्थ गेम में उत्तराखंड की संस्कृति
"हर पड़ा पढाएं एक" सुन्दर अल्मोड़ा,शिक्षित अल्मोड़ा
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आज के इतिहासकारों की मान्यता है कि सन् १५६३ ई. में चंदवंश के राजा बालो कल्याणचंद ने आलमनगर के नाम से इस नगर को बसाया था। चंदवंश की पहले राजधानी चम्पावत थी। कल्याणचंद ने इस स्थान के महत्व को भली-भाँति समझा। तभी उन्होंने चम्पावत से बदलकर इस आलमनगर (अल्मोड़ा) को अपनी राजधानी बनाया।
सन् १५६३ से लेकर १७९० ई. तक अल्मोड़ा का धार्मिक भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व कई दिशाओं में अग्रणीय रहा। इसी बीच कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं राजनैतिक घटनाएँ भी घटीं। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से भी अल्मोड़ा सम्स्त कुमाऊँ अंचल का प्रतिनिधित्व करता रहा।
सन् १७९० ई. से गोरखाओं का आक्रमण कुमाऊँ अंचल में होने लगा था। गोरखाओं ने कुमाऊँ तथा गढ़वाल पर आक्रमण ही नहीं किया बल्कि अपना राज्य भी स्थापित किया। सन् १८१६ ई. में अंग्रेजो की मदद से गोरखा पराजित हुए और इस क्षेत्र में अंग्रेजों का राज्य स्थापित हो गया।
स्वतंत्रता की लड़ाई में भी अल्मोड़ा के विशेष योगदान रहा है। शिक्षा, कला एवं संस्कृति के उत्थान में अल्मोड़ा का विशेष हाथ रहा है।
कुमाऊँनी संस्कृति की असली छाप अल्मोड़ा में ही मिलती है - अत: कुमाऊँ के सभी नगरों में अल्मोड़ा ही सभी दृष्टियों से बड़ा है।
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होली के कुछ प्रसिद्ध गीत
परियों के रंग दमकते हों
खूँ शीशे जाम छलकते हों
महबूब नशे में छकते हों
तब देख बहारें होली की
नाच रंगीली परियों का
कुछ भीगी तानें होली की
कुछ तबले खड़कें रंग भरे
कुछ घुँघरू ताल छनकते हों
तब देख बहारें होली की
मुँह लाल गुलाबी आँखें हों
और हाथों में पिचकारी हो
उस रंग भरी पिचकारी को
अंगिया पर तककर मारी हो
सीनों से रंग ढलकते हों
तब देख बहारें होली की
जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की
- नज़ीर अकबराबादी
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बहुत दिन बाद कोयल
पास आकर बोली है
पवन ने आके धीरे से
कली की गाँठ खोली है.
लगी है कैरियां आमों में
महुओं ने लिए कूचे,
गुलाबों ने कहा हँस के
हवा से अब तो होली है.
-त्रिलोचन
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गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ए यार होली में.
नहीं यह है गुलाले सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे,
ये आशिक ही है उमड़ी आहें आतिशबार होली में.
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो,
मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में.
है रंगत जाफ़रानी रुख़ अबीरी कुमकुम कुछ है,
बने हो ख़ुद ही होली तुम ए दिलदार होली में.
रसा गर जामे-मय ग़ैरों को देते हो तो मुझको भी,
नशीली आँख दिखाकर करो सरशार होली में.
-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
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समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तराखंड |
मंडल | कुमाऊं |
जनसंख्या • घनत्व | ६३०,५६७ (2001 के अनुसार [update]) • २०५ /कि.मी.२ (५३१ /वर्ग मी.) |
लिंग अनुपात | 862[तथ्य वांछित] ♂/♀ |
क्षेत्रफल • ऊंचाई (AMSL) | ३,०८२ km² (१,१९० sq mi) • १,६४६ मीटर (५,४०० फी.ft) |
मौसम तापमान • ग्रीष्म • शीत | ऑलपाइन आर्द्र अर्ध-उष्णकटिबन्धीय (Köppen) • 28 - -2 °C (84 °F) • 28 - 12 °C (70 °F) • 15 - -2 °C (61 °F) |
प्राचीन अल्मोड़ा कस्बा, अपनी स्थापना से पहले कत्यूरी राजा बैचल्देओ के अधीन था। उस राजा ने अपनी धरती का एक बड़ा भाग एक गुजराती ब्राह्मण श्री चांद तिवारी को दान दे दिया।[१] बाद में जब बारामण्डल चांद साम्राज्य का गठन हुआ, तब कल्याण चंद द्वारा १५६८ में अल्मोड़ा कस्बे की स्थापना इस केन्द्रीय स्थान पर की गई।[२] कल्याण चंद द्वारा।[तथ्य वांछित] चंद राजाओं के समय मे इसे राजपुर कहा जाता था। 'राजपुर' नाम का बहुत सी प्राचीन ताँबे की प्लेटों पर भी उल्लेख मिला है।
६० के दशक में बागेश्वर जिले और चम्पावत जिले नहीं बनें थे और अल्मोड़ा जिले के ही भाग थे।
अल्मोड़ा कस्बा पहाड़ पर घोड़े की काठीनुमा आकार के रिज पर बसा हुआ है। रिज के पूर्वी भाग को तालिफत और पश्चिमी भाग को सेलिफत के नाम से जाना जाता है। यहाँ का स्थानीय बाज़ार रिज की चोटी पर स्थित है जहाँ पर तालिफत और सेलिफत संयुक्त रूप से समाप्त होते हैं।
बाज़ार २.०१ किमी लम्बा है और पत्थर की पटियों से से ढका हुआ है। जहाँ पर अभी छावनी है, वह स्थान पहले लालमंडी नाम से जाना जाता था। वर्तमान में जहाँ पर कलक्टरी स्थित है, वहाँ पर चंद राजाओं का 'मल्ला महल' स्थित था। वर्तमान में जहाँ पर जिला अस्पताल है, वहाँ पर चंद राजाओं का 'तल्ला महल' हुआ करता था।
सिमलखेत नामक एक ग्राम अल्मोड़ा और चमोली की सीमा पर स्थित है। इस ग्राम के लोग कुमाँऊनी और गढ़वाली दोनो भाषाएँ बोल सकते हैं। पहाड़ की चोटी पर एक मंदिर है, भैरव गढ़ी।
गोरी नदी अल्मोड़ा जिले से होकर बहती है।
अल्मोड़ा में एक प्रसिद्ध नृत्य अकादमी है, डांसीउस - जहाँ बहुत से भारतीय और फ्रांसीसी नर्तकों को प्रक्षिक्षण दिया गया था। इसकी स्थापना उदय शंकर द्वारा १९३८ में की गई थी। अल्मोड़ा नृत्य अकादमी को कस्बे के बाहर रानीधर नामक स्थान पर गृहीत किया गया। इस स्थान पर से हिमालय और पूरे अल्मोड़ा कस्बे का शानदार दृश्य दिखाई देता है।
"इन पहाड़ों पर, प्रकृति के आतिथ्य के आगे मनुष्य द्वारा कुछ भी किया जाना बहुत छोटा हो जाता है। यहाँ हिमालय की मनमोहक सुंदरता, प्राणपोषक मौसम, और आरामदायक हरियाली जो आपके चारों ओर होती है, के बाद किसी और चीज़ की इच्छा नहीं रह जाती। मैं बड़े आश्चर्य के साथ ये सोचता हूँ की क्या विश्व में कोई और ऐसा स्थान है जो यहाँ की दृश्यावली और मौसम की बराबरी भी कर सकता है, इसे पछाड़ना तो दूर की बात है। यहाँ अल्मोड़ा में तीन सप्ताह रहने के बात मैं पहले से अधिक आश्चर्यचकित हूँ की हमारे देश के लोग स्वास्थ्य लाभ के लिए यूरोप क्यों जाते है।" - महात्मा गांधी
जनसांख्यिकी
२००१ की भारतीय जनगणना के अनुसार, अल्मोड़ा जिले की जनसंख्या ६,३०,५६७ है।
यातायात
वायु
यहाँ से निकटतम विमानतल पंतनगर (नैनीताल) में है, जिसकी दूरी है, १२७ किमी।
रेल
सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन रामनगर में है, जो यहाँ से ९० किमी दूर स्थित है, औए वहाँ से दिल्ली, लखनऊ, और आगरा के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं। काठगोदाम का स्टेशन भी वहाँ से कुछ दूरी पर स्थित है। काठगोदाम से कुछ मुख्य रेलें हैं:
- शताब्दी ऐक्स्प्रैस
- हावड़ा ऐक्स्प्रैस (३०१९/३०२०)
- रानीखेत ऐक्स्प्रैस (५०१३/५०१४)
- रामपुर पैसेंजर (१/२ आर॰के॰ पैसेंजर और ३/४ आर॰के॰ पैसेंजर)
- नैनीताल ऐक्स्प्रैस (५३०८/५३०७)
सड़क
अल्मोड़ा सड़क मार्ग द्वारा इस क्षेत्र के प्रमुख केन्द्रों से जुड़ा है। विभिन्न केन्द्रों की दूरियाँ:
- दिल्ली ३७८ किमी
- लखनऊ ४६० किमी
- नैनीताल ६६ किमी (रानीखेत के रास्ते १०३ किमी)
- काठगोदाम ९० किमी
संदर्भ
- ↑ कुमाँऊ अल्मोड़ा जिले की आधिकारिक वेबसाइट।
- ↑ अल्मोड़ा का इतिहास
प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - बागेश्वर |
निर्देशांक | 29.83° N 79.77° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई | 11.73 वर्ग कि.मी.
|
समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (2001) - घनत्व | 7803 - /वर्ग कि.मी. |
नगर पालिका अध्यक्ष | |
संकेतक - डाक - दूरभाष - वाहन | - 263 xxx - +05963 - |
बागेश्वर का अर्थ है देवताओं का बाग |
चंपावत | |
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| |
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तराखंड |
मंडल | कुमाऊं |
मुख्यालय | चंपावत |
जनसंख्या • घनत्व | २२४,५४२ • १२६ /कि.मी.२ (३२६ /वर्ग मी.) |
क्षेत्रफल | १,७८१ km² (६८८ sq mi) |
निर्देशांक: 29°20′N 80°06′E / 29.33, 80.1 चम्पावत कावि का घर ओर भारतीय राज्य उत्तरांचल का एक जिला है। इसका मुख्यालय चंपावत में है। उत्तराखंड का ऐतिहासिक चंपावत जिला अपने आकर्षक मंदिरों और खूबसूरत वास्तुशिल्प के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। पहाड़ों और मैदानों के बीच से होकर बहती नदियां अद्भुत छटा बिखेरती हैं। चंपावत में पर्यटकों को वह सब कुछ मिलता है जो वह एक पर्वतीय स्थान से चाहते हैं। वन्यजीवों से लेकर हरे-भरे मैदानों तक और ट्रैकिंग की सुविधा, सभी कुछ यहां पर है।
समुद्र तल से 1615 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चंपावत कई सालों तक कुंमाऊं के शासकों की राजधानी रहा है। चांद शासकों के किले के अवशेष आज भी चंपावत में देखे जा सकते हैं।
अनुक्रम |
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण चांद शासन ने करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला काफी सुंदर है। ऐसा माना जाता है कि बालेश्रवर मंदिर का निर्माण 10-12 ईसवीं शताब्दी में हुआ था।
इस मंदिर में की गई वास्तुकला काफी खूबसूरत है। यह कुंमाऊं के पुराने मंदिरों में से एक है।
यह सिक्खों के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। यह स्थान चम्पावत से 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि सिक्खों के प्रथम गुरू, गुरू नानक जी यहां पर आए थे। यह गुरूद्वारा जहां पर स्थित है वहां लोदिया और रतिया नदियों का संगम होता है। गुरूद्वार परिसर पर रीठे के कई वृक्ष लगे हुए है। ऐसा माना जाता है कि गुरू के स्पर्श से रीठा मीठा हो जाता है। गुरूद्वारा के साथ में ही धीरनाथ मंदिर भी है। बैसाख पूर्णिमा के अवसर पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है। चम्पावत टुनिया की सबसे अच्हि जगह है कवि का घर है चम्पाबत मै।
यह पवित्र मंदिर पूर्णनागिरी पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर तंकपुर से 20 किलोमीटर तथा चम्पावत से 92 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पूरे देश से काफी संख्या में भक्तगण इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर में सबसे अधिक भीड़ चैत्र नवरात्रों ( मार्च-अर्प्रैल) में होती है। यहां से काली नदी भी प्रवाहित होती है जिसे शारदा के नाम से जाना जाता है।
यह जगह चम्पावत से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके साथ ही यह स्थान स्वामी विवेकानन्द आश्रम के लिए भी प्रसिद्ध है जो कि खूबसूरत श्यामातल झील के तट पर स्थित है। इस झील का पानी नीले रंग का है। यह झील 1.5 वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई है। इसके अलावा यहां लगने वाला झूला मेला भी काफी प्रसिद्ध है।
यह स्थान नेपाल सीमा के समीप स्थित है। इस जगह पर काली और सरयू नदियां आपस में मिलती है। पंचेश्रवर भगवान शिव के मंदिर के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। काफी संख्या में भक्तगण यहां लगने वाले मेलों के दौरान आते हैं। और इन नदियों में डूबकी लगाते हैं।
यह जगह चम्पावत से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह खूबसूरत जगह वराही मंदिर के नाम से जानी जाती है। यहां बगवाल के अवसर पर दो समूह आपस में एक दूसरे पर पत्थर फेकते हैं। यह अनोखी परम्परा रक्षा बन्धन के अवसर की जाती है।
यह ऐतिहासिक शहर चम्पावत से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान लोहावती नदी के तट पर स्थित है। यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह स्थान गर्मियों के दौरान यहां लगने वाले बुरास के फूलों के लिए भी प्रसिद्ध है।
अब्बोट माउंट बहुत ही खूबसूरत जगह है। इस स्थान पर ब्रिटिश काल के कई बंगले मौजूद है। यह खूबसूरत जगह लोहाघाट से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा यह जगह 2001 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
यह पवित्र मंदिर पूर्णनागिरी पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर तंकपुर से 20 किलोमीटर तथा चम्पावत से 92 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पूरे देश से काफी संख्या में भक्तगण इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर में सबसे अधिक भीड़ चैत्र नवरात्रों ( मार्च-अर्प्रैल) में होती है। यहां से काली नदी भी प्रवाहित होती है जिसे शारदा के नाम से जाना जाता है।
यह जगह चम्पावत से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके साथ ही यह स्थान स्वामी विवेकानन्द आश्रम के लिए भी प्रसिद्ध है जो कि खूबसूरत श्यामातल झील के तट पर स्थित है। इस झील का पानी नीले रंग का है। यह झील 1.5 वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई है। इसके अलावा यहां लगने वाला झूला मेला भी काफी प्रसिद्ध है।
यह स्थान नेपाल सीमा के समीप स्थित है। इस जगह पर काली और सरयू नदियां आपस में मिलती है। पंचेश्रवर भगवान शिव के मंदिर के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। काफी संख्या में भक्तगण यहां लगने वाले मेलों के दौरान आते हैं। और इन नदियों में डूबकी लगाते हैं।
यह जगह चम्पावत से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह खूबसूरत जगह वराही मंदिर के नाम से जानी जाती है। यहां बगवाल के अवसर पर दो समूह आपस में एक दूसरे पर पत्थर फेकते हैं। यह अनोखी परम्परा रक्षा बन्धन के अवसर की जाती है।
यह ऐतिहासिक शहर चम्पावत से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान लोहावती नदी के तट पर स्थित है। यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह स्थान गर्मियों के दौरान यहां लगने वाले बुरास के फूलों के लिए भी प्रसिद्ध है।
अब्बोट माउंट बहुत ही खूबसूरत जगह है। इस स्थान पर ब्रिटिश काल के कई बंगले मौजूद है। यह खूबसूरत जगह लोहाघाट से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा यह जगह 2001 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
निकटतम रेलवे स्टशन : काठ्गोदाम (35 किलोमीटर)
निकटतम हवाई अड्डा : पंतनगर (70 किलोमीटर)
निकटतम राजमार्ग : नैनीताल राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 87 पर है.
क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.
साक्षरता -
एस. टी. डी (STD) कोड - ०५९४२
जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में)
समुद्र तल से उचाई -
अक्षांश - उत्तर
देशांतर - पूर्व
औसत वर्षा - मि.मी.
कुछ प्रमुख शहरों से नैनीताल की सडक द्वारा दूरी:
अलमोडा 64
पिथोरागढ 186
रानीखेत 62
चंपावट 160
कौसानी 117
काठगोदाम 34
हल्द्वानी 40
लालकुआं 60
रामनगर 65
बरेली 140
लखनऊ 400
आगरा 403
दिल्ली 310
देहरादून 300
हरिद्वार 245
बद्रीनाथ 334
नैनीताल | |
मालरोड नैनीताल | |
| |
प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - नैनीताल |
निर्देशांक | 29.24° N 79.28° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई | 3853 वर्ग कि.मी. वर्ग कि.मी.
|
समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (2001) - घनत्व | 762,912 - /वर्ग कि.मी. |
[नगर पालिका अध्यक्ष. Mukesh Joshi]] | |
संकेतक - डाक - दूरभाष - वाहन | - 263 001 - +05942 - uk 04 |
जिले का मुख्यालय पिथौरागढ़ है ।
क्षेत्रफल - 7,217.7 वर्ग कि.मी.
जनसंख्या - 4,62,289 (2,27,615 पुरुष)(2,34,674 महिला)(2001 जनगणना)
साक्षरता - 75.9% (90.1% पुरुष)(62.6% महिला)
एस. टी. डी (STD) कोड - 05964
जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में)
समुद्र तल से उचाई -1645 मीटर
अक्षांश - 29.4° to 30.3° उत्तर
देशांतर - 80° to 81° पूर्व
औसत वर्षा - मि.मी.
पिथौरागढ़ | |
| |
प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - पिथौरागढ़ |
निर्देशांक | 29.4° N 80.1° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई | 7110 वर्ग कि.मी.
|
समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (2001) - घनत्व | 566408 - 65/वर्ग कि.मी. |
नगर पालिका अध्यक्ष | |
संकेतक - डाक - दूरभाष - वाहन | - 262501 - +05964 - UK 05 |
भारतीय राज्यउत्तरांचल का एक जिला है ।
जिले का मुख्यालय उधमसिंहनगर है ।
क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.
जनसंख्या - (2001 जनगणना)
साक्षरता -
एस. टी. डी (STD) कोड - 05949
जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में)
समुद्र तल से उचाई -
अक्षांश - उत्तर
देशांतर - पूर्व
औसत वर्षा - मि.मी.
उधमसिंह नगर | |
| |
प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - उधमसिंह नगर |
निर्देशांक | 30° N 78° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई | 3055 वर्ग कि.मी.
|
समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (2001) - घनत्व | 9,15,000 (1991) - /वर्ग कि.मी. |
नगर पालिका अध्यक्ष | |
संकेतक - डाक - दूरभाष - वाहन | - 263153 - +05944 - |
चमोली | |
फूलों की घाटी, चमोली | |
| |
प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - चमोली |
निर्देशांक | 30.27° N 79.5° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई | 7,626 वर्ग कि.मी. वर्ग कि.मी.
|
समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (2001) - घनत्व | 3,70,359 - /वर्ग कि.मी. |
नगर पालिका अध्यक्ष | |
संकेतक - डाक - दूरभाष - वाहन | - २४६४०१ - +०१३७२ - |
बद्रीनाथ देश के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। यह चार धामों में से एक धाम है। श्री बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। इसके बाद इसका निर्माण दो शताब्दी पूर्व गढ़वाल राजाओं ने करवाया था। बद्रीनाथ तीन भागों में विभाजित है- गर्भ गृह, दर्शन मंडप और सभा मंडप।
अलखनंदा नदी के किनार पर ही तप कुंड स्थित कुंड है। इस कुंड का पानी काफी गर्म है। इस मंदिर में प्रवेश करने से पहले इस गर्म पानी में स्नान करना जरूरी होता है। यह मंदिर प्रत्येक वर्ष अप्रैल-मई माह में खुलता है। सर्दियों के दौरान यह नवम्बर के तीसर सप्ताह में बंद रहता है। इसके साथ ही बद्रीनाथ में चार बद्री भी है जिसे सम्मिलित रूप से पंच बद्री के नाम से जाना जाता है। यह अन्य चार बद्री- योग ध्यान बद्री, भविष्य बद्री, आदि बद्री और वृद्धा बद्री है।
हेमकुंड को स्न्रो लेक के नाम से भी जाना जाता है। यह समुद्र तल से 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां बर्फ से ढके सात पर्वत हैं, जिसे हेमकुंड पर्वत के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त तार के आकार में बना गुरूद्वारा जो इस झील के समीप ही है सिख धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। यहां विश्व के सभी स्थानों से हिन्दू और सिख भक्त काफी संख्या में घूमने के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरू गोविन्द सिंह जी, जो सिखों के दसवें गुरू थे, यहां पर तपस्या की थी। यहां घूमने के लिए सबसे अच्छा समय जुलाई से अक्टूबर है।
गोपेश्वर शहर में तथा इसके आस-पास बहुत सारे मंदिर है। यहां के प्रमुख आकर्षण केन्दों में पुराना शिव मंदिर, वैतामी कुंड आदि है।
पंच प्रयाग में गढ़वाल हिमालय से निकलने वाली पांच प्रमुख नदियों का संगम होता है। ये पांच नदियां विष्णु प्रयाग, नंद प्रयाग, कर्ण प्रयाग, रूद्र प्रयाग और देव प्रयाग है।
यहां दो प्रमुख नदियों अलखनंदा और भागीरथी आपस में मिलती है। इसके अलावा यहां कई प्रसिद्ध मंदिर और नदी घाट भी है। ऐसा माना जाता है कि देव प्रयाग में भगवान विष्णु ने राजा बाली से तीन कदम भूमि मांगी थी। यहां रामनवमी, दशहरा और बसंत पंचमी के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है।
यहां अलखनंदा और धौली गंगा नदियों का संगम होता है। यह समुद्र तल से 6000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। विष्णु प्रयाग से जोशीमठ सिर्फ 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
प्राकृतिक प्रेमियों के लिए यह जगह स्वर्ग के समान है। इस स्थान की खोज फ्रेंक स्मिथ और आर.एल. होल्डवर्थ ने 1930 में की थी। इस घाटी में सबसे अधिक संख्या में जंगली फूलों की किस्में देखी जा सकती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार हनुमान जी लक्ष्मण जी के प्राणों की रक्षा के लिए यहां से संजीवनी बूटी लेने के लिए आए थे। इस घाटी में पौधों की 521 किस्में हैं। 1982 में इस जगह को राष्ट्रीय उद्यान के रूप मे घोषित कर दिया गया था। इसके अलावा यहां आपको कई जानवर जैसे, काला भालू, हिरण, भूरा भालू, तेंदुए, चीता आदि देखने को मिल जाएंगें।
औली बहुत ही खूबसूरत जगह है। अगर आप बर्फ से ढ़के पर्वतों और स्की का मजा लेना चाहते हैं तो औली बिल्कुल सही जगह है। जोशीमठ के रास्ते से आप औली तक पहुंच सकते हैं। जो कि लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सर्दियों में कई प्रतियोगियों का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन गढ़वाल मंडल विकास सदन द्वारा करवाया जाता है। इसके अलावा आप यहां से नंदा देवी,कामत औद और दुनागिरी पर्वतों का नजारा भी देख सकते हैं। जनवरी से माच के समय में औली पूरी तरह बर्फ की चादर से ढ़का हुआ रहता है। यहां पर बर्फ करीबन तीन फीट तक गहरी होती है। औली में होने वाले स्की कार्यक्रम यहां पर्यटकों को अपनी ओर अधिक आकर्षित करते हैं।
सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है।
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जोलीग्रांड है। यह चमोली से 221 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, नैनीताल और अल्मोड़ा सभी जगह से चमोली के लिए बसें चलती है।
भारत के उत्तराखंड राज्य की राजधानी है इसका मुख्यालय देहरादून नगर में है। इस जिले में ६ तहसीलें, ६ सामुदायिक विकास खंड, १७ शहर और ७६४ आबाद गाँव हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ १८ गाँव ऐसे भी हैं जहाँ कोई नहीं रहता।[१] देश की राजधानी से २३० किलोमीटर दूर स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह नगर अनेक प्रसिद्ध शिक्षा संस्थानों के कारण भी जाना जाता है। यहाँ तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, सर्वे ऑफ इंडिया, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान आदि जैसे कई राष्ट्रीय संस्थान स्थित हैं। देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय मिलिटरी कालेज और इंडियन मिलिटरी एकेडमी जैसे कई शिक्षण संस्थान हैं।[२] यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। अपनी सुंदर दृश्यवाली के कारण देहरादून पर्यटकों, तीर्थयात्रियों और विभिन्न क्षेत्र के उत्साही व्यक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। विशिष्ट बासमती चावल, चाय और लीची के बाग इसकी प्रसिद्धि को और बढ़ाते हैं तथा शहर को सुंदरता प्रदान करते हैं।
देहरादून दो शब्दों देहरा और दून से मिलकर बना है। इसमें देहरा शब्द को डेरा का अपभ्रंश माना गया है। जब सिख गुरु हर राय के पुत्र रामराय इस क्षेत्र में आए तो अपने तथा अनुयायियों के रहने के लिए उन्होंने यहाँ अपना डेरा स्थापित किया।[३] कालांतर में नगर का विकास इसी डेरे का आस-पास प्रारंभ हुआ। इस प्रकार डेरा शब्द के दून शब्द के साथ जुड़ जाने के कारण यह स्थान देहरादून कहलाने लगा।[४], कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि देहरा शब्द स्वयं में सार्थकता लिए हुए है, इसको डेरा का अपभ्रंश रूप नहीं माना जा सकता है। देहरा शब्द हिंदी तथा पंजाबी में आज भी प्रयोग किया जाता है। हिंदी में देहरा का अर्थ देवग्रह अथवा देवालय है, जबकि पंजाबी में इसे समाधि, मंदिर तथा गुरुद्वारे के अर्थो में सुविधानुसार किया गया है। इसी तरह दून शब्द दूण से बना है और यह दूण शब्द संस्कृत के द्रोणि का अपभ्रंश है। संस्कृत में द्रोणि का अर्थ दो पहाड़ों के बीच की घाटी है। यह भी विश्वास किया जाता है कि यह पूर्व में ऋषि द्रोणाचार्य का डेरा था।
देहरादून | |
देहरादून रेलवे स्टेशन | |
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प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - देहरादून |
निर्देशांक | 30.19° N 78.4° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई | ३०८८.०० वर्ग कि.मी.
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समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (२००१) - घनत्व | १२,७९,०८३ - ४१४/वर्ग कि.मी. |
मुख्यमंत्री | मेजर जन. (रिटा.) अति विशिष्ट सेवा मैडल. भुवन चंद्र खंडूरी |
संकेतक - डाक - दूरभाष - वाहन | - २४८००x - +०१३५ - |
जालस्थल: dehradun.nic.in |
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का गौरवशाली इतिहास अनेक पौराणिक गाथाओं एवं विविध संस्कृतियों को अपने आगोश में समेटे हुए है। रामायण काल से देहरादून के बारे में विवरण आता है कि रावण के साथ युद्ध के बाद भगवान राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण इस क्षेत्र में आए थे। द्रोणाचार्य से भी इस स्थान का संबंध जोड़ा जाता है।[५]. इसी प्रकार देहरादून जिले के अंतर्गत ऋषिकेश के बारे में भी स्कंद पुराण में उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने दैत्यों से पीड़ित ऋषियों की प्रार्थना पर मधु-कैटभ आदि राक्षसों का संहार कर यह भूमि ऋषियों को प्रदान की थी। पुराणों मे देहरादून जिले के जिन स्थानों का संबंध रामायण एवं महाभारत काल से जोड़ा गया है उन स्थानों पर प्राचीन मंदिर तथा मूर्तियाँ अथवा उनके भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं। इन मंदिरों तथा मूर्तियों एवं भग्नावशेषों का काल प्राय: दो हजार वर्ष तथा उसके आसपास का है। क्षेत्र की स्थिति और प्राचीन काल से चली आ रही सामाजिक परंपराएँ, लोकश्रुतियाँ तथा गीत और इनकी पुष्टि से खड़ा समकालीन साहित्य दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र रामायण तथा महाभारत काल की अनेक घटनाओं का साक्षी रहा है। महाभारत की लड़ाई के बाद भी पांडवों का इस क्षेत्र पर प्रभाव रहा और हस्तिनापुर के शासकों के अधीनस्थ शासकों के रूप में सुबाहु के वंशजों ने यहां राज किया। यमुना नदी के किनारे कालसी में अशोक के शिलालेख प्राप्त होने से इस बात की पुष्टि होती है कि यह क्षेत्र कभी काफी संपन्न रहा होगा। सातवीं सदी में इस क्षेत्र को सुधनगर के रूप में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी देखा था। यह सुधनगर ही बाद में कालसी के नाम से पहचाना जाने लगा। कालसी के समीपस्थ हरिपुर में राजा रसाल के समय के भग्नावशेष मिले हैं जो इस क्षेत्र की संपन्नता को दर्शाते हैं। देहरादून पर इस ओर से महमूद गजनवी, १३६८ में तैमूरलंग, १७५७ में रूहेला सरदार नजीबुद्दौला]और १७८५ में गुलाम कादिर के गंभीर हमले हुए। १८०१ तक देहरादून में अव्यवस्था बनी रही। १८१६ के बाद अंग्रेज़ों ने इस पर विजय प्राप्त की और अपने आराम के लिए १८२७-१८२८ में लंढोर और मसूरी शहर बसाए। १९७० के दशक में इसे गढ़वाल मंडल में शामिल किया गया। सन २००० में उत्तरप्रदेश से अलग होकर बने उत्तरांचल और अब उत्तराखंड की राजधानी देहरादून को बनाया गया। राजधानी बनने के बाद इस शहर का निरंतर विकास हो रहा है।[६]
देहरादून की जलवायु सारणी | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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ज | फ | मा | अ | म | जू | जु | अ | सि | अ | न | दि | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||
47 19 3 | 55 22 5 | 52 26 9 | 21 32 13 | 54 35 17 | 230 34 20 | 631 30 22 | 627 30 22 | 261 30 20 | 32 28 13 | 11 24 7 | 3 21 4 | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||
°C में तापमान • मिमी में कुल वर्षण स्रोत: देहरादून जिले की जलवायु | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
इम्पीरियल अन्तरण
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देहरादून जिला उत्तर में हिमालय से तथा दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसमें कुछ पहाड़ी नगर अत्यंत प्रसिद्ध है जैसे मसूरी, सहस्रधारा, चकराता,लाखामंडल तथा डाकपत्थर। पूर्व में गंगा नदी और पश्चिम में यमुना नदी प्राकृतिक सीमा बनाती है। यह जिला दो प्रमुख भागों में बंटा है जिसमें मुख्य शहर देहरादून एक खुली घाटी है जो कि शिवालिक तथा हिमालय से घिरी हुई है और दूसरे भाग में जौनसार बावर है जो हिमालय के पहाड़ी भाग में स्थित है। यह उत्तर और उत्तर पश्चिम में उत्तरकाशी जिले, पूर्व में टिहरी और पौड़ी जिले से घिरा हुआ है। इसकी पश्चिमी सीमा पर हिमांचल प्रदेश का सिरमौर जिला तथा टोंस और यमुना नदियाँ हैं तथा दक्षिण में हरिद्वार जिले और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले इसकी सीमा बनाते हैं। यह २९ डिग्री ५८' और ३१ डिग्री २' ३०" उत्तरी अक्षांश तथा ७७ डिग्री ३४' ४५" और ७८ डिग्री १८' ३०" पूर्व देशांतर के बीच स्थित है। [७] इस जिले में (देहरादून, चकराता, विकासनगर, कलसी, त्यूनी तथा ऋषिकेश) ६ तहसीलें, विज़, चकराता, कलसी, विकासनगर, सहासपुर, राजपुर और डोइवाला नाम के ६ सामुदायिक विकास खंड, १७ नगर और ७६४ गाँव हैं। इनमें से ७४६ गाँवों में लोग निवास करते हैं जबकि १८ जिले निर्जन हैं।[८] जनपद में साक्षरता ७८.५ प्रतिशत है, पुरुषों की साक्षरता ८५.८७ तथा महिला साक्षरता ७१.२० प्रतिशत है। ग्रामीण क्षेत्र की जनसंख्या ६०१९६५ और नगरीय जनसंख्या मात्र ६७७११८ है।
देहरादून जिले की जलवायु समशीतोष्ण है पर ऊँचाई के आधार पर कुछ जगहों पर काफ़ी सर्दी पड़ती है। जिले का आसपास की पहाड़ियों पर सर्दियों में काफ़ी हिमपात होता है पर देहरादून का तापमान आमतौर पर शून्य से नीचे नहीं जाता। गर्मियों में सामान्यतः यहाँ का तापमान २७ से ४० डिग्री सेल्सियस के बीच और सर्दियों में २ से २४ डिग्री के बीच रहता है। वर्षा ऋतु में निरंतर और अच्छी बारिश होती है। सर्दियों में पहाड़ियों पर मौसम सुहावना होता है पर दून घाटी गर्म होती हैं। उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी और पर्याप्त पानी के कारण जनपद में कृषि की हालत अच्छी है।[९] और पहाड़ी के ढ़लानों पर काटकर बनाए गए सीढ़ीनुमा खेतों में खेती होती है।
देहरादून एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ एक ओर नगर की सीमा में टपकेश्वर मंदिर, मालसी डियर पार्क, कलंगा स्मारक, लक्ष्मण सिद्ध, चंद्रबाणी, साईंदरबार, गुच्छूपानी, वन अनुसंधान संस्थान, तपोवन, संतोलादेवी मंदिर, तथा वाडिया संस्थान जैसे दर्शनीय स्थल हैं।[१०] तो दूसरी और नगर से दूर पहाड़ियों पर भी अनेक दर्शनीय स्थल हैं। देहरादून जिले के पर्यटन स्थलों को आमतौर पर चार-पाँच भागों में बाँटा जा सकता है- प्राकृतिक सुषमा, खेलकूद, तीर्थस्थल, पशुपक्षियों के अभयारण्य, ऐतिहासिक महत्व के संग्रहालय और संस्थान तथा मनोरंजन। देहरादून में इन सभी का आनंद एकसाथ लिया जा सकता है। देहरादून की समीपवर्ती पहाड़ियाँ जो अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिए जानी जाती हैं, मंदिर जो आस्था के आयाम हैं, अभयारण्य जो पशु-पक्षी के प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, रैफ्टिंग और ट्रैकिंग जो पहाड़ी नदी के तेज़ बहाव के साथ बहने व पहाड़ियों पर चढ़ने के खेल है और मनोरंजन स्थल जो आधुनिक तकनीक से बनाए गए अम्यूजमेंट पार्क हैं, यह सभी देहरादून में हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मसूरी, सहस्रधारा, चकराता,लाखामंडल तथा डाकपत्थर की यात्रा की जा सकती है। संतौरादेवी तथा टपकेश्वर के प्रसिद्ध मंदिर यहाँ पर हैं, राजाजी नेशनल पार्क तथा मालसी हिरण पार्क जैसे प्रसिद्ध अभयारण्य हैं, ट्रैकिंग तथा रैफ्टिंग की सुविधा है, फ़न एंड फ़ूड तथा फ़न वैली जैसे मनोरंजन पार्क हैं तथा इतिहास और शिक्षा से प्रेम रखने वालों के लिए संग्रहालय और संस्थान हैं।
आवागमन - देहरादून किसी भी मौसम में जाया जा सकता है लेकिन सितंबर-अक्तूबर और मार्च-अप्रैल का मौसम यहाँ जाने के लिए सबसे उपयुक्त है। यहाँ पहुँचने के लिए बहुत से विकल्प हैं।
देहरादूत अत्यंत प्राचीनकाल से अपने शैक्षिक संस्थानों[१२] के लिए प्रसिद्ध रहा है। दून और वेल्हम्स स्कूल का नाम बहुत समय से अभिजात्यवर्ग में शान के साथ लिया जाता है। यहाँ भारतीय प्रशासनिक सेवा और सैनिक सेवाओं के प्रशिक्षण संस्थान हैं जो इसे शिक्षा के क्षेत्र में विशेष स्थान दिलाते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग, सर्वे ऑफ इंडिया, आई.आई.पी. आदि जैसे कई राष्ट्रीय संस्थान स्थित हैं। देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान से भारत के अधिकतम वन अधिकारी बाहर आते हैं। इसी प्रकार यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम फॉर एनर्जी स्टडीज़ उच्च श्रेणी का एक विशेष अध्ययन संस्थान है जो देश में गिने चुने ही हैं। यहाँ सभी धर्मों के अलग अलग विद्यालयों के साथ ही बहुत से पब्लिक स्कूल भी हैं। योग, आयुर्वेद और ध्यान का भी यह नगर लोकप्रिय केन्द्र है।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण संस्थाएँ शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं, जिनमें नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर द वर्चुअल हैंडीकैप[१३] (एन.आई.वी.एच) का नाम महत्वपूर्ण है जो दृष्टिहीनों के विकास में सहत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह संस्थान भारत में पहला है और यहाँ देश की सबसे पहली ब्रेली लिपि की प्रेस है। यह राजपुर रोड पर निरन्तर कार्यशील है और इसका परिसर बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके कर्मचारी परिसर में ही रहते हैं। इसके अतिरिक्त शार्प मेमोरियल स्कूल फॉर द ब्लाइंड[१४] नामक निजी संस्था राजपुर में है जो दृष्टि से अपंग बच्चों की शिक्षा तथा पुनर्वास का काम करते हैं। कानों से सम्बन्धित रोगों और अपंगता के लिए बजाज संस्थान (बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ़ लर्निंग) है। ये सभी संस्थाएँ राजपुर मार्ग पर ही स्थित है। उत्तराखण्ड सरकार का एक और केन्द्र है- करूणा विहार[१५], जो मानसिक रूप से चुनौतियाँ झेल रहे बच्चों के लिए कार्य करते है। राफील रेडरचेशायर अर्न्तराष्ट्रीय केन्द्र द्वारा टी.बी व अधरंग के इलाज के लिये डालनवाला में एक अस्पताल है। ये सभी संस्थाएँ देहरादून का गौरव बढ़ाती हैं तथा यहाँ के निवासियों के बेहतर जीवन के प्रति कटिबद्ध हैं।
देहरादून गढ़वाल क्षेत्र का एक भाग है, इसलिए यहाँ की संस्कृति पर स्थानीय रीति-रिवाजों का काफी प्रभाव है। गढ़वाली यहाँ बोली जाने वाली प्राथमिक भाषा है। इस क्षेत्र में बोली जाने वाली अन्य भाषाएं हैं- हिंदी और अंग्रेजी। यहाँ पर विभिन्न समुदाय और धर्मों को मानने वाले लोग सौहार्द्र के साथ रहते हैं, यहाँ पर लगातार शिक्षा सुविधाओं के विकास, संचार तंत्र के दिन-ब-दिन मजबूत होने और परिवहन व्यवस्था के निरंतर विकास के कारण देहरादून की सामाजिक और सांस्कृतिक पर्यावरण की आधुनिकीकरण की प्रक्रिया भी तेज़ हो गई है। बदलाव की इस धारा को देहरादून में साफतौर पर देखा जा सकता हैं। यह प्रदेश की राजधानी है अतः सभी सरकारी संस्थानों के कार्यालयों का घर भी है। नगर के कार्यकलाप का केन्द्र घंटाघर है जहाँ ऊँचे स्तंभ पर ५ घड़ियाँ लगी हुई हैं। ये सभी समय बताती हैं। देहरादून देश के सर्वोत्कृष्ट शिक्षा संस्थानों की भूमि भी है। अनेक स्कूलों के विद्यार्थी अपनी यूनीफ़ार्म में चलहलकदमी करते नगर की शोभा बढ़ाते हैं। नीली पट्टी वाली बसें देहरादून की सड़कों की पहचान हैं। इसके अतिरिक्त यातायात के लिए तीन पहिए वाला विक्रम बहुत लोकप्रिय है हाँलाँकि इसको प्रदूषण और शोर के लिए दोषी भी माना जाता है। राजपुर रोड की चहलपहल शाम के जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। राजधानी बनने के बाद इसके एक ओर तेज़ी से औद्योगिक विकास के चिह्न भी दिखाई देने लगे हैं फिर भी यह अपनी तमाम खूबियों के बावजूद सुंदर मौसम वाला शांतिपूर्ण छोटा शहर मालूम होता है। यही कारण है कि वर्षो से देहरादून कलाकारों का घर रहा है। शान्ति निकेतन के डीजेन सेन की मूर्ति अब भी विभिन्न बिन्दुओं से शहर की शोभा को बढाती है। देहरादून लेखकों का घर भी रहा है। डेविड कीलिंग, नयनतारा सहगल, एलन सैले, बिल एक्नि और रस्किन बांड या तो लम्बे समय तक देहरादून में रहे या यहाँ अपने ठहराव के समय किताबें लिखी। देहरादून कई प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों का का शहर है, जिनका नाम बड़े ही गर्व के साथ यहां के घंटा घर के संगमरमर के खंभों पर स्वर्णाक्षरों में लिखा हुआ है।[१६]
लोक संस्कृति - इस घाटी की परम्परागत पौशाक ऊनी कम्बल जिसे लाबा कहते है अब भी ऊँचाई पर स्थित गाँव में पहने जाते है। स्त्रियाँ पूरी बाहों की कमीज के साथ साडी़ पहनती है। अंगरा (एक प्रकार की जाकेट) पहनती है। नौजवान औरते घाघरा पहनती है। एक फन्टू (रंगीन स्कार्फ) या एक ओढनी (लम्बा स्कार्फ) जो सिर और कन्धों को ढके हुए हो। दूसरी तरफ पुरूष आमतौर से मिरजई, अंगरखा, लगोंट या धोती बाँधते है। धोती को पहने का तरीका उनके स्तर को प्रदर्शित करता है। उदाहरण के रूप में छोटी धोती का मतलब वे नीची जाति से और लम्बी धोती का मतलब ऊँची जाति से है। सर्दी में पुरूष सदरी (जाकेट), टोपी और घुटनो तक का कोट पहनते है। क्योकि उस क्षेत्र के जंगलो में भाँग उगती है। भाँग का धागा सूत के रूप में प्रयोग किया जाता है जिसे भाँगला कहते है। देहरादून की अधिकांश जनसंख्या खेती करती है, बडी संख्या में लोग सेना में जाते हैं या व्यापारी होते है या बुद्धिजीवी होते है। लोगो का भोजन सादा है। भोजन में दालभात (दाल-चावल) दोपहर बाद, रोटी सब्जी शाम को। इसके अतिरिक्त आलू गुटका, रायता (स्थानीय, खीरे या ककडी का) उडद की दाल का वड़ा और गेहत की दाल का वडा यहाँ के लोकप्रिय भोजन हैं।
देहरादून में आप प्राचीन स्थापत्य के सुंदर नमूने देख सकते हैं। अभी भी प्राचीन भवन निर्माण शैली में बने भवन देखे जा सकते हैं, जो काफी आकर्षक और सुंदर हैं। देहरादून में बननेवाले भवनों की सबसे बड़ी खासियत है, ढालुआं छत। इन भवनों के छत ढालुआं होते हैं। इसका कारण यह है कि यहां मूसलाधार वर्षा होती है। मूसलाधार बारिश घरों को नुकसान नहीं पहुंचाए, इसलिए यहां के घरों के छत ढालुआं बनाए जाते हैं। चूंकि इस क्षेत्र में काफी ठंड पड़ती है, इसलिए हर पुराने बंगले में ऐसी व्यवस्था है जहां पर आग जलाकर कमरों को गर्म रखा जा सकता है। हालांकि आजकल आधुनिक गैजेट्स पुराने उपकरणों की जगह तेजी से ले रहे हैं फिर भी कमरों को गर्म रखने की पारंपरिक व्यवस्था आज भी प्रचलित है। इसे आज भी देहरादून और उसके आसपास के घरों में आप देख सकते हैं। उत्तराखंड राज्य के बनने के बाद देहरादून यहां की अस्थायी राजधानी बना। इसके बाद से ही यहां के भवन निर्माण शैली में काफी परिवर्तन आया है। यहां पर बंगले का निर्माण भी संख्या में हो रहा है। भवन निर्माण की आधुनिक शैली ने पुरानी शैली का स्थान ले लिया है। हालांकि अब भी यहां पर आज से 100 साल पहले भवन आसानी से देखे जा सकते हैं। हाल में होनेवाले निर्माण को देखकर आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कि यहां की भवन निर्माण तकनीक में कितना फर्क आया है। एक बात तो पूरी तरह से साफ है कि यहां पर बने पुराने भवन ब्रिटिश भवन निर्माण शैली का सुंदर नमूना पेश करते हैं और उस जमाने की निर्माण शैली की याद को ताजा कर देते हैं। देहरादून के साथ वास्तुकला की एक सम्पन्न परंपरा जुड़ी हुई है। यहां पर कई खूबसूरत ईमारतें हैं जो वास्तुकला के दृष्टिकोण से एक धरोहर है। कुछ बेहद महत्वपूर्ण ईमारतों में सम्मिलित हैं- देहरादून घंटाघर, वन अनुसंधान संस्थान, सीएनआई ब्यॉज इंटर कॉलेज, मॉरीसन मेमोरियल चर्च, इनामुल्लाह भवन, जामा मस्जिद, ओशो ध्यान केन्द्र, इंडियन मिलिटरी एकेडमी तथा दरबार साहेब यहाँ के दर्शनीय भवन हैं और वास्तुकला की दृष्टि से विशेष महत्व रखते हैं।
देहरादून नगर का पिछले २० सालों में तेज़ विकास हुआ है। इसकी शैक्षिक पृष्ठभूमि और अंतर्राष्ट्रीय आय के कारण यहाँ प्रति व्यक्ति आय १८०० डॉलर है जो सामान्य भारतीय आय ८०० डॉलर से काफ़ी अधिक है। महानगर की ओर विकास के चरण बढ़ाते हुए इस नगर को देखना एक सुखद अनुभूति है। सॉफ्टवेयर टेक्नॉलॉजी पार्क (STPI) की स्थापना[१७] और स्पेशल इकोनॉमी ज़ोन (SEZ) के विकास के साथ ही यह नगर व्यापार और प्रौद्योगिकी के पूर्ण विकास की ओर बढ़ चला है। यहाँ एक विशेष औद्योगिक पट्टी का विकास किया गया है जिसके कारण देश विदेश के अनेक प्रमुख उद्योगों की अनेक इकाइयाँ यहाँ स्थापित होकर नगर के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। कंपनियों को दिये गए विभिन्न कर लाभ देहरादून के विकास में उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। दिल्ली से देहरादून तक बने बेहतर राजमार्ग के कारण यातायात की सुविधा बढ़ी है और आने वाले दिनों में बेहतर अर्थ व्यवस्था की आशा की जा सकती है। देहरादून मधु, फलों से बने शरबत, प्राकृतिक साबुन, तेल और शैम्पू जैसे कुदरती और जैविक उत्पादों के लिए भी मशहूर है। बासमती चावल का निर्यात यहाँ का एक प्रमुख उद्योग है। इसके अतिरिक्त यहाँ से फूलों और फलों का निर्यात भी होता है। स्थानीय स्तर पर कीमती चाय की खेती भी यहाँ होती है। क्वालिटी टॉफ़ी के नाम से प्रसिद्ध भारत का पहला टॉफी का कारखाना भी यहाँ लगाया गया है। आज भी वह यहाँ स्थित है। हाँलाँकि आज बहुत सी कंपनियाँ तरह तरह की टॉफ़ियाँ बनाने लगी हैं और सब यहाँ मिलती हैं पर क्वालिटी टॉफी का आकर्षण अभी है।
भारतीय राज्य उत्तराखण्ड का एक जिला है ।
जिले का मुख्यालय रोशनाबाद, हरिद्वार है ।
क्षेत्रफल - 2360 वर्ग कि.मी.
जनसंख्या - 1147.19 हजार (2001 जनगणना)
साक्षरता -
एस. टी. डी (STD) कोड - 01334
जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में)
समुद्र तल से उचाई -
अक्षांश - उत्तर
देशांतर - पूर्व
औसत वर्षा - मि.मी.
हरिद्वार | |
गंगाघाट हरिद्वार | |
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प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - हरिद्वार |
निर्देशांक | 29.96° N 78.16° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई | 2360 वर्ग किमी वर्ग कि.मी.
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समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (2001) - घनत्व | 1147.19 हजार - /वर्ग कि.मी. |
जिलाधीश | |
नगर पालिका अध्यक्ष |
पौड़ी | |
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प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - पौड़ी |
निर्देशांक | 30.8° N 78.49° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई | 5438 वर्ग कि.मी.
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समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (2001) - घनत्व | 697,078 - /वर्ग कि.मी. |
जिलाधीश | |
नगर पालिका अध्यक्ष | |
संकेतक - डाक - दूरभाष - वाहन | - 246001 - +01368 - UA 12 |
संपूर्ण वर्ष मैं यहाँ का वातावरण बहुत ही सुहावना रहता है यहाँ की मुख्य नदियों मैं अलखनंदा और नायर प्रमुख हैं। पौढ़ी गढ़वाल की मुख्य बोली गढ़वाली है अन्य भाषा मैं हिन्दी और इंग्लिश भी यहाँ के लोग बखूबी बोलते हैं। यहाँ के लोक गीत, संगीत एवं नृत्य यहाँ की संस्कृति की संपूर्ण जगत मैं अपनी अमित चाप छोड़ती है। यहाँ की महिलाएं जब खेतों मई काम करती है या जंगलों मैं घास काटने जाती हैं तब अपने लोक गीतों को खूब गाती हैं इसी प्रकार अपने अराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए ये लोक नृत्य करते हैं। पौढ़ी गढ़वाल त्योंहारों मैं साल्टा महादेव का मेला, देवी का मेला, भौं मेला सुभनाथ का मेला और पटोरिया मेला प्रसिद्द हैं इसी प्रकार यहाँ के पर्यटन स्थल मैं कंडोलिया का शिव मन्दिर, बिनसर महादेव, मसूरी , खिर्सू, लाल टिब्बा, ताराकुण्ड, जल्प देवी मन्दिर प्रमुख हैं। यहाँ से नजदीक हवाई अड्डा जोली ग्रांट जो की पौढ़ी से 150-160 किमी की दुरी पर है रेलवे का नजदीक स्टेशन कोटद्वार है एवं सड़क मार्ग मैं यह ऋषिकेश, कोटद्वार एवं देहरादून से जुडा है।
क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.
जनसंख्या - (2001 जनगणना)
साक्षरता -
एस. टी. डी (STD) कोड -
जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में)
समुद्र तल से उचाई -
अक्षांश - उत्तर
देशांतर - पूर्व
औसत वर्षा - मि.मी.
रुद्रप्रयाग अलखनंदा और मंदाकिनी के संगम पर बसा एक छोटा किंतु प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर नगर है। यह केदारनाथ मंदिर और पंचकेदार नामक पाँच तीर्थस्थलों के लिए जाना जाता है। पंचकेदारों के नाम हैं- केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मदमहेश्वर और कल्पेश्वर इस जिले के ग्राम, नगर तथा उपनगर हैं--
रुद्रप्रयाग | |
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प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - रुद्रप्रयाग |
निर्देशांक | 30.28° N 78.98° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई | 1896 वर्ग कि.मी.
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समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (2001) - घनत्व | 2,242 - /वर्ग कि.मी. |
जिलाधीश | |
नगर पालिका अध्यक्ष |
टिहरी गढ़वाल | |
टिहरी बाँध की झील | |
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प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - टिहरी गढ़वाल |
निर्देशांक | 30.3833° N 78.4833° E |
क्षेत्रफल | 4,421 वर्ग कि.मी. |
समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (2001) - घनत्व | 5,80,153 - /वर्ग कि.मी. |
नगर पालिका अध्यक्ष | |
संकेतक - डाक - दूरभाष - वाहन | - 24920x - +01376 - |
टिहरी और गढ़वाल दो अलग नामों को मिलाकर इस जिले का नाम रखा गया है। जहाँ टिहरी बना है शब्द ‘त्रिहरी’ से, जिसका मतलब है एक ऐसा स्थान जो तीन तरह के पाप (जो जन्मते है मनसा, वचना, कर्मा से) धो देता है वहीं दूसरा शब्द बना है ‘गढ़’ से, जिसका मतलब होता है किला। सन् 888 से पूर्व सारा गढ़वाल क्षेत्र छोटे छोटे ‘गढ़ों’ में विभाजित था, जिनमें अलग-अलग राजा राज्य करते थे जिन्हें ‘राणा’, ‘राय’ या ‘ठाकुर’ के नाम से जाना जाता था।
ऐसा कहा जाता है कि मालवा के राजकुमार कनकपाल एक बार बद्रीनाथ जी (जो आजकल चमोली जिले में है) के दर्शन को गये जहाँ वो पराक्रमी राजा भानु प्रताप से मिले। राजा भानु प्रताप उनसे काफी प्रभावित हुए और अपनी इकलौती बेटी का विवाह कनकपाल से करवा दिया साथ ही अपना राज्य भी उन्हें दे दिया। धीरे-धीरे कनकपाल और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ एक-एक कर सारे गढ़ जीत कर अपना राज्य बड़ाती गयीं। इस तरह से सन् 1803 तक सारा (918 सालों में) गढ़वाल क्षेत्र इनके कब्जे में आ गया।
उन्ही सालों में गोरखाओं के नाकाम हमले (लंगूर गढ़ी को कब्जे में करने की कोशिश) भी होते रहे, लेकिन सन् 1803 में आखिर देहरादून की एक लड़ाई में गोरखाओं की विजय हुई जिसमें राजा प्रद्वमुन शाह मारे गये। लेकिन उनके शाहजादे (सुदर्शन शाह) जो उस वक्त छोटे थे वफादारों के हाथों बचा लिये गये। धीरे-धीरे गोरखाओं का प्रभुत्व बढ़ता गया और इन्होनें करीब 12 साल राज्य किया। इनका राज्य कांगड़ा तक फैला हुआ था, फिर गोरखाओं को महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा से निकाल बाहर किया। और इधर सुदर्शन शाह ने इस्ट इंडिया कम्पनी की मदद से गोरखाओं से अपना राज्य पुनः छीन लिया।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने फिर कुमाऊँ, देहरादून और पूर्व (ईस्ट) गढ़वाल को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला दिया और पश्चिम गढ़वाल राजा सुदर्शन शाह को दे दिया जिसे तब टेहरी रियासत के नाम से जाना गया।
राजा सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी टिहरी या टेहरी शहर को बनाया, बाद में उनके उत्तराधिकारी प्रताप शाह, कीर्ति शाह और नरेन्द्र शाह ने इस राज्य की राजधानी क्रमशः प्रताप नगर, कीर्ति नगर और नरेन्द्र नगर स्थापित की। इन तीनों ने 1815 से सन् 1949 तक राज्य किया। तब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यहाँ के लोगों ने भी काफी बढ चढ कर हिस्सा लिया। आजादी के बाद, लोगों के मन में भी राजाओं के शासन से मुक्त होने की इच्छा बलवती होने लगी। महाराजा के लिये भी अब राज करना मुश्किल होने लगा था। और फिर अंत में 60 वें राजा मानवेन्द्र शाह ने भारत के साथ एक हो जाना कबूल कर लिया। इस तरह सन् 1949 में टिहरी राज्य को उत्तर प्रदेश में मिलाकर इसी नाम का एक जिला बना दिया गया। बाद में 24 फरवी 1960 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसकी एक तहसील को अलग कर उत्तरकाशी नाम का एक ओर जिला बना दिया।
इस स्थान पर बाल गंगा और धर्म गंगा नदियां आपस में मिलती है। टिहरी से इस जगह की दूरी 59 किलोमीटर है। ऐसा माना जाता है कि दुर्योधन ने इसी जगह पर तर्पण किया था। पौराणिक कथा के अनुसार, भिरगू पर्वत पर पंडावों और ऋषि बालखिली के बीच लड़ाई हुई थी।
देवप्रयाग एक प्राचीन शहर है।यह भारत के सर्वाधिक धार्मिक शहरों में से एक है। इस स्थान पर अलखनंदा और भागीरथी नदियां आपस में मिलती है। देवप्रयाग शहर समुद्र तल से 472 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। देवप्रयाग जिस पहाड़ी पर स्थित है उसे गृद्धाचल के नाम से जाना जाता है। यह जगह गिद्ध वंश के जटायु की तपोभूमि के रूप में भी जानी जाती है। माना जाता है कि इस स्थान पर ही भगवान राम ने किन्नर को मुक्त किया था। इसे ब्रह्माजी ने शाप दिया था जिस कारण वह मकड़ी बन गई थी।
यह काफी प्रसिद्ध जगह है। मसूरी स्थित केम्पटी फॉल टिहरी से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह हिल स्टेशन के रूप में अधिक जानी जाती है जो यमनोत्री मार्ग पर स्थित है। यहां स्थित वाटर फॉल ( जल प्रपात ) खूबसूरत घाटी पर स्थित है। हर साल यहां हजारों की संख्या में देशी एवं विदेशी पर्यटक यहां आते हैं।
यह जगह समुद्र तल से 3040 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से आप हिमालय की खूबसूरत वादियों के नजारों का लुफ्त उठा सकते हैं। इसके अतिरिक्त यहां से देहरादून की घाटियों का नजारा भी देखा जा सकता है। नगतिबा ट्रैर्क्स और पर्वतारोहियों के लिए बिल्कुल सही जगह है। इस स्थान की प्राकृतिक सुंदरता यहां पर्यटकों को अपनी ओर अधिक आकर्षित करती है। नगतिबा पंतवारी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यहां रहने की सुविधा नहीं है। इसलिए ट्रैर्क्स पंतवारी में कैम्प में रहा करते हैं। इसलिए आप जब इस जगह पर जाएं तो अपने साथ टैंट व अन्य सामान जरूर ले कर जाएं।
नरेन्द्र नगर मुनि-की-रीति से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह जगह समुद्र तल से 1,129 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
चम्बा मंसूरी से 60 किलोमीटर और नरेन्द्र नगर से 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान समुद्र तल से 1676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से बर्फ से ढके हिमालय पर्वत और भागीरथी घाटी का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। चम्बा अपने स्वादिष्ट सेबों के लिए भी प्रसिद्ध है।
यह स्थान देवप्रयाग से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चंद्रबदनी पंहुचने के आपको कांडीखाल से 10 किलोमीटर तक पैदल यात्रा करनी होगी। ऐसा माना जाता है कि राजा दक्ष द्वारा भगवान शिव को यज्ञ में न बुलाने के कारण माता सती ने यज्ञ कुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। इसके पश्चात् भगवान शिव ने सती को हवन कुंड से निकाल कर अपने कंधों पर रख लिया। इस प्रकार वह कई वर्षो तक सती को लेकर इधर-उधर घूमते रहे। इसके बाद भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र द्वारा 52 हिस्सों में कांट दिया। माता सती के शरीर का निम्न हिस्सा इसी स्थान पर गिरा था। इसके अतिरिक्त मंदिर के आसपास कई अन्य छोट-छोटे मंदिर भी है। प्रत्येक वर्ष अप्रैल माह में इस स्थान पर बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
यह जगह समुद्र तल से 2903 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर नाग राज का है। यह मंदिर पर्वत के सबसे ऊपरी भाग में स्थित है। मुखेम गांव से इस मंदिर की दूरी दो किलोमी.है। माना जाता है कि मुखेम गांव की स्थापना पंड़ावों द्वारा की गई थी।
धनौलटी एक गांव है। जो कि चम्बा से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गांव ऑक, देवदार और सदाबहार पौधों (गुलाब जसे दिखने वाला) से घिरा हुआ है। यह गांव छुट्टिया बिताने और पिकनिक स्थल के रूप में बिल्कुल उचित जगह है। यह गांव चारों ओर से जंगलों और बर्फ से ढके पर्वतों से घिरी हुई है। यह जगह काफी शान्तिपूर्ण स्थल के रूप में भी जानी जाती है जिस कारण यहां पर्यटकों की भीड़ अधिक रहती है।
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जोलीग्रांट हवाई अड्डा है। टिहरी जोलीग्रांट से 93 किलोमीटर की दूरी पर है।
ऋषिकेश सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। ऋषिकेश से टिहरी 76 किलोमीटर दूर स्थित है।
नई टिहरी कई महत्वूर्ण मार्गो जैसे देहरादून, मसूरी, हरिद्वार, पौढ़ी, ऋषिकेश और उत्तरकाशी आदि जगहों से जुड़ा हुआ है। आस-पास की जगह घूमने के लिए टैक्सी द्वारा भी जाया जा सकता है।
जिले का मुख्यालय उत्तरकाशी है ।
उत्तरकाशी ऋषिकेश से 155 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक शहर है, जो उत्तरकाशी जिले का मुख्यालय है। यह शहर भागीरथी नदी के तट पर बसा हुआ है। उत्तरकाशी धार्मिक दृष्िट से भी महत्वपूर्ण शहर है। यहां भगवान विश्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। यह शहर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहां एक तरफ जहां पहाड़ों के बीच बहती नदियां दिखती हैं वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों पर घने जंगल भी दिखते हैं। यहां आप पहाड़ों पर चढ़ाई का लुफ्त भी उठा सकते हैं।
क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.
जनसंख्या - (2001 जनगणना)
साक्षरता -
एस. टी. डी (STD) कोड -
जिलाधिकारी - (सितम्बर 2006 में)
समुद्र तल से उचाई -
अक्षांश - उत्तर
देशांतर - पूर्व
औसत वर्षा - मि.मी.
उत्तरकाशी | |
द्रैपदी का डंडा, उत्तरकाशी की एक चोटी | |
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प्रदेश - जिला | उत्तराखंड - उत्तरकाशी |
निर्देशांक | 30.44° N 78.27° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई | . वर्ग कि.मी.
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समय मण्डल | भा॰मा॰स॰ (स॰वि॰स॰ +५:३०) |
जनसंख्या (2001) - घनत्व | 2,39,709 - /वर्ग कि.मी. |
नगर पालिका अध्यक्ष |
उत्तरकाशी का एक अन्य आकर्षण पर्वतारोहण है। यहां आप पर्वतारोहण का मजा ले सकते हैं। हर-की-दून, दोदीतल, यमुनोत्री तथा गोमुख से पर्वतारोहण किया जा सकता है।
उत्तरकाशी के अधिकांश रेस्टोरेंटों में शाकाहारी खाना मिलता है। कुछ होटलो में विशेष अनुरोध पर गढ़वाली भोजन बनाया जाता है। झंगुरा,मंडुआ तथा भट्ट यहां के प्रमुख भोजन है। इसके साथ-साथ रायता तथा रोटी भी यहां के लोग खाते हैं। सत्यम फूड यहां का सबसे बढि़या रेस्टोरेंट है।
प्राचीन विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर उत्तरकाशी के बस स्टैण्ड से 300 मीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना परशुराम जी द्वारा की गई थी तथा महारानी कांति ने 1857 ई.में इस मंदिर का मरम्मत करवाया। महारानी कांति सुदर्शन शाह की पत्नी थीं। इस मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है। उत्तरकाशी आने वाले पर्यटक इस मंदिर को देखने जरुर आते हैं।
विश्वनाथ मंदिर के दायीं ओर शक्ित मंदिर है। इस मंदिर में 6 मीटर ऊंचा तथा 90 सेंटीमीटर परिधि वाला एक बड़ा त्रिशूल स्थापित है। इस त्रिशूल का ऊपरी भाग लोहे का तथा निचला भाग तांबे का है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी दुर्गा (शक्ित) ने इसी त्रिशूल से दानवों को मारा था। बाद में इन्हीं के नाम पर यहां इस मंदिर की स्थापना की गई।
यह स्थान उत्तरकाशी से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर एक डैम बनाया गया है। डैम होने के कारण यह स्थान पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। यह डैम भागीरथी नदी पर बना गया है। यहां बिजली उत्पादन किया जाता है।
यह स्थान मनीरी से गंगोत्री जाने के रास्ते पर स्थित है। यहां एक गर्म पानी का झरना है।
यह ताल समुद्र तल से 3307 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह ताल चारों तरफ से घने जंगलों से घिरा हुआ है। यहां पर्यटकों की हमेशा भीड़ लगी रहती है। इस ताल में मछली मारने के लिए मंडल वन अधिकारी,उत्तरकाशी से अनुमति लेनी होती है।
यह बुग्याल समुद्र तल से 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से हिमालय का बहुत ही सुंदर नजारा दिखता है। यहां एक छोटी सी झील भी है।
सत ताल का अर्थ है सात झीलें। यह धाराली से 2 किलोमीटर ऊपर हरसिल के पास स्थित है। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है।
यह ताल समुद्र तल से 15000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। थाल्यासागर चोटी का इसमें स्पष्ट प्रतिबिंब नजर आता है। केदार ताल जाने के रास्ते में कोई सुविधा नहीं मिलती है। इसलिए यहां पूरी तैयारी के साथ जाना चाहिए।
इस ताल के चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। ताल के तट पर एक छोटा सा मंदिर भी है। कहा जाता है कि नचिकेता जो संत उदाक के पुत्र थे उन्होने ही इस ताल का निर्माण किया था। इसी कारण इस ताल का नाम नचिकेता ताल पड़ा। इस ताल के पास ठहरने और खाने की कोई सुविधा नहीं है।
गोमुख हिमनदी ही भागीरथी (गंगा) नदी के जल का स्रोत है। यह हिंदुओं के लिए बहुत ही पवित्र स्थान है। यहां आने वाला प्रत्येक यात्री को यहां जरुर स्नान करना चाहिए है। यह गंगोत्री से 18 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से 14 किलोमीटर दूर भोजबासा में एक पर्यटक बंगला है जहां पर्यटकों के ठहरने और भोजन की व्यवस्था होती है।
यह स्थान गंगोत्री हिमनद से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से आसपास की पहाड़ी का बहुत सुंदर नजारा दिखता है।
इस संस्थान की स्थापना 1965 ई.में हुई। इस संस्थान में पर्वतारोहण सिखाया जाता है। यहां एक हिमालयन संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय में पर्वतारोहण से संबंधित पुस्तकें, फिल्म्ा तथा स्लाइडस रखे हुए हैं। यहां एक दुकान भी हैं। इसमें पर्वतारोहण से संबंधित सामान मिलता हैं। लोकेशन: टहरी झील के नजदीक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 108 पर। वेबसाइट: nimindia.org समय: सुबह 10बजे से शाम 5 बजे तक। मंगलवार बंद। शुल्क: वयस्क के लिए 5 रु.तथा बच्चों के लिए 2 रु.।
मार्च से अप्रैल तथा जुलाई से अक्टूबर से यहां जाने का सबसे उत्तम समय है।
यहां सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून में जौली ग्रांट है। यहां दिल्ली से एयर डक्कन की प्रतिदिन दो उड़ाने जाती है।
देहरादून यहां का सबसे नजदीकी रेल स्टेशन है। दिल्ली, मुंबई तथा जयपुर से यहां के लिए सीधी रेल सेवा है।
उत्तरकाशी सड़क मार्ग द्वारा देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हूआ है। दिल्ली के कश्मीरी गेट से उत्तरकाशी के लिए बस खुलती हैं। इसके अलावा देहरादून से भी उत्तरकाशी के लिए सीधी बस सेवा है। ऋषिकेश से भी यहां के लिए बसें खुलती है।
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