Friday, August 20, 2010
पथराई आंखों ने दी 18 बच्चों को अंतिम विदाई
बुधवार की सुबह सुमगढ़ के सरस्वती शिशु मंदिर तप्तकुंड में बादल फटने के बाद आये मलबे में 18 बच्चे जिंदा दफन हो गये थे। स्थानीय ग्रामीणों, पुलिस प्रशासन, आईटीबीपी व राजस्व टीम ने सभी शवों को मलबे से निकाल लिया है। जिला प्रशासन ने घटना स्थल पर ही मृत बच्चों का पोस्टमार्टम कर शव परिजनों को सौंप दिए। इस घटना से गांव में मातम छाया है। नन्हे-मुन्ने बच्चों के शव जब परिजनों को सौंपे गए तो चारों ओर चीत्कार व क्रंदन गूंज उठा। इस हृदयविदारक दृश्य को देख हर व्यक्ति रो पड़ा। परिजन कलेजे पर पत्थर रखकर अपने लाड़लों को दफनाने ले गये। इस दौरान सुमगढ़, सलिंग, पेठी, सलिंग उडियार आदि गांवों के सैकड़ों लोग मौजूद थे। शवों को लोगों ने अपने-अपने गांवों के श्मशान घाट पर दफन किया। इस दौरान डीएम डीएस गब्र्याल, एसपी मुख्तार मोहसिन सहित तहसील स्तर के अधिकारी भी मौजूद थे।
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इतिहास
आज के इतिहासकारों की मान्यता है कि सन् १५६३ ई. में चंदवंश के राजा बालो कल्याणचंद ने आलमनगर के नाम से इस नगर को बसाया था। चंदवंश की पहले राजधानी चम्पावत थी। कल्याणचंद ने इस स्थान के महत्व को भली-भाँति समझा। तभी उन्होंने चम्पावत से बदलकर इस आलमनगर (अल्मोड़ा) को अपनी राजधानी बनाया।
सन् १५६३ से लेकर १७९० ई. तक अल्मोड़ा का धार्मिक भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व कई दिशाओं में अग्रणीय रहा। इसी बीच कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं राजनैतिक घटनाएँ भी घटीं। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से भी अल्मोड़ा सम्स्त कुमाऊँ अंचल का प्रतिनिधित्व करता रहा।
सन् १७९० ई. से गोरखाओं का आक्रमण कुमाऊँ अंचल में होने लगा था। गोरखाओं ने कुमाऊँ तथा गढ़वाल पर आक्रमण ही नहीं किया बल्कि अपना राज्य भी स्थापित किया। सन् १८१६ ई. में अंग्रेजो की मदद से गोरखा पराजित हुए और इस क्षेत्र में अंग्रेजों का राज्य स्थापित हो गया।
स्वतंत्रता की लड़ाई में भी अल्मोड़ा के विशेष योगदान रहा है। शिक्षा, कला एवं संस्कृति के उत्थान में अल्मोड़ा का विशेष हाथ रहा है।
कुमाऊँनी संस्कृति की असली छाप अल्मोड़ा में ही मिलती है - अत: कुमाऊँ के सभी नगरों में अल्मोड़ा ही सभी दृष्टियों से बड़ा है।
प्रचलित कीवर्ड्स
सौंदर्य को देखने के लिए संवेदनशीलता चाहिए । प्रकृति में सौंदर्य भरा पड़ा है ।...
प्राकर्तिक सौंदर्य एवं सुन्दरता की एक झलक
मौसम का सुन्दर नजारा
छोलिया नृत्य - इस अंचल का सबसे अधिक चहेता नृत्य 'छौलिया' है
"चितय गोल ज्यू कुमाऊं में न्याय देवता के रूप में पूजे जाते हैं गोल ज्यू"
कोणार्क के सूर्य मन्दिर के बाद कटारमल का यह सूर्य मन्दिर दर्शनीय है.
देवभूमि के ऐसे ही रमणीय स्थानों में बाबा नीम करोली महाराज का कैची धाम है.
जागेश्वर उत्तराखंड का मशहूर तीर्थस्थान माना जाता है। यहां पे 8 वीं सदी के बने 124 शिव मंदिरों का समूह है जो अपने शिल्प के लिये खासे मशहूर हैं। इस स्थान में सावन के महीने में शिव की पूजा करना अच्छा माना जाता है। अल्मोड़ा से जागेश्वर की दूरी लगभग 34 किमी. की है।
अल्मोड़ा की प्रसिद्ध परंपरागत बाल मिठाई.
यह मशहूर “
ये एक तरह का पेडा होता है जिसे मावे से बनाया जाता है। फोटो में आप जो पान जैसी मिठाई देख रहे हैं वही है सिंगोड़ी। दरअसल इस मिठाई की खासियत ये है कि इसे सिंगोड़ी के पत्ते में लपेटकर रखा जाता है।
इस मिठाई को बनाने के लिए पेडे को नौ से दस घंटे तक पत्ते में लपेट कर रखा जाता है।जिसके बाद पत्ते की खुशबु पेडे में आ जाती है। यही खुशबु इस मिठाई की पहचान है।
विश्वविद्यालय से न्यू इन्द्र कालोनी खत्याड़ी अल्मोड़ा का परिद्रिश्य.
"इन्द्रधनुस" सुरूज की किरण जब पानी की बूंद लेकर के गुजरे तब वो किरण अपने सात रंग की छटा ले इन्द्रधनुस के रूप में उभरती है | यह अदभुत नजारा देखें बिना आप नहीं रह सकते |
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