Saturday, September 3, 2011
नंदा देवी डोला, नंदा देवी मेला महोत्सव, २०११
Thursday, April 21, 2011
उत्तराखंड संस्कृति की प्रमुख लोक कला `ऐपण' (Aipan)
मेरो पहाड़ के सभी साथियों को योगेश की नमस्कार !
जैसा की आप लोगो को पता ही है की हमारी संस्कृति में विभिन्न प्रकार की लोक कलाएं मौजूद है। उन्ही में से एक प्रमुख कला है एपण (Aipan) जो की आज की आज समाज में एक कला बनकर ही अपितु एक उधोग के रूप में भी प्रकाशित हो रही है। जिसने कई बेरोज़गारो को रोज़गार की राह दिखाई है।
"अपनी कला द्वारा अपना जीवन निर्वाह करने वाला इंसान ही व्यवसायिक कहलाता है।"कुमाऊं सांस्कृतिक
ऐपण (Aipan) कला परिचय
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Aipan (ऐपण) |
कुमाऊं की स्थानीय चित्रकला की शैली को एपण के रूप में जाना जाता है। मुख्यतया उत्तराखंड में शुभ अवसरों पर बनायीं जाने वाली रंगोली को ऐपण (Aipan) कहते हैं। ऐपण कई तरह के डिजायनों से पूर्ण होता है। फुर्तीला उंगलियों और हथेलियों का प्रयोग करके अतीत की घटनाओं, शैलियों, अपने भाव विचारों और सौंदर्य मूल्यों पर विचार कर इन्हें संरक्षित किया जाता है।
ऐपण (Aipan) के मुख्य डिजायन -चौखाने , चौपड़ , चाँद , सूरज , स्वस्तिक , गणेश ,फूल-पत्ती, बसंत्धारे,पो, तथा इस्तेमाल के बर्तन का रूपांकन आदि शामिल हैं। ऐपण के कुछ डिजायन अवसरों के अनुसार भी होते हैं।
कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने एपण कला को जीवित रखने का प्रयास किया है। ग्रामीण अंचलों में यह परंपरा काफी समृद्ध है। संस्थाये ऐंपण कला सिखाने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर लगाती रहती है। प्रमुख रूप से इसमें महिलाओं को लक्ष्मी चौकी, विवाह चौकी (जिसें दुल्हेर्ग कहा जाता है), दिवाली की चौकी तैयार करने के तरीके सिखाए जाते हैं।
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Aipan |
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Aipan |
Wednesday, March 16, 2011
"होली के रंग मेरो पहाड़ संग"

उत्तराखंड कुमांऊनी होली: सतरंगी रंगों से सराबोर
मेरे बलम के तीन शहर हैं
मेरे बलम के तीन शहर हैं
दिल्ली, आगरा और पटना..
बलमा घर आये कौन दिना. बलमा घर आये कौन दिना .. सजना घर आये कौन दिना।
मेरे बलम की तीन रानियां
पूनम, रेखा और सलमा
बलमा घर आये कौन दिना. बलमा घर आये कौन दिना .. सजना घर आये कौन दिना।
मेरे बलम के तीन ठिकानेघर, ऑफिस और दारू का भट्टा
बलमा घर आये कौन दिना. बलमा घर आये कौन दिना .. सजना घर आये कौन दिना।
अबीर उड़ता गुलाल उड़ता, उड़ते सातों रंग…सखी री उड़ते सातों रंग
भर पिचकारी ऐसी मारी, अंगियां हो गयी तंग…
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियां के संग….
तबला बाजे, सारंगी बाजे, और बाजे मिरदंग…सखी री और बाजे मिरदंग
कान्हा जी की बंसी बाजे, राधा जी के संग…
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियां के संग….
कोरे कोरे माट मंगाये, तापर घोला रंग, सखी री तापर घोला रंग
भर पिचकारी सनमुख मारी, अंखिंया हो गयी बंद…
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियां के संग….
लंहगा तेरा घूम घुमेला, चोली तेरी तंग
खसम तुम्हारे बड़ निकट्ठू , चलो हमारे संग
रंग में होली कैसे खेलूं री मैं सांवरियां के संग….
Monday, February 21, 2011
अपनी बात: कुमाऊं के देवी-देवता
कृपया यहाँ खोजे
सुन्दर अल्मोड़ा, शिक्षित अल्मोड़ा,जानियें अपने शहर के बारें में और भी बहुत कुछ .....
इतिहास
आज के इतिहासकारों की मान्यता है कि सन् १५६३ ई. में चंदवंश के राजा बालो कल्याणचंद ने आलमनगर के नाम से इस नगर को बसाया था। चंदवंश की पहले राजधानी चम्पावत थी। कल्याणचंद ने इस स्थान के महत्व को भली-भाँति समझा। तभी उन्होंने चम्पावत से बदलकर इस आलमनगर (अल्मोड़ा) को अपनी राजधानी बनाया।
सन् १५६३ से लेकर १७९० ई. तक अल्मोड़ा का धार्मिक भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व कई दिशाओं में अग्रणीय रहा। इसी बीच कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक एवं राजनैतिक घटनाएँ भी घटीं। साहित्यिक एवं सांस्कृतिक दृष्टियों से भी अल्मोड़ा सम्स्त कुमाऊँ अंचल का प्रतिनिधित्व करता रहा।
सन् १७९० ई. से गोरखाओं का आक्रमण कुमाऊँ अंचल में होने लगा था। गोरखाओं ने कुमाऊँ तथा गढ़वाल पर आक्रमण ही नहीं किया बल्कि अपना राज्य भी स्थापित किया। सन् १८१६ ई. में अंग्रेजो की मदद से गोरखा पराजित हुए और इस क्षेत्र में अंग्रेजों का राज्य स्थापित हो गया।
स्वतंत्रता की लड़ाई में भी अल्मोड़ा के विशेष योगदान रहा है। शिक्षा, कला एवं संस्कृति के उत्थान में अल्मोड़ा का विशेष हाथ रहा है।
कुमाऊँनी संस्कृति की असली छाप अल्मोड़ा में ही मिलती है - अत: कुमाऊँ के सभी नगरों में अल्मोड़ा ही सभी दृष्टियों से बड़ा है।
प्रचलित कीवर्ड्स
सौंदर्य को देखने के लिए संवेदनशीलता चाहिए । प्रकृति में सौंदर्य भरा पड़ा है ।...
प्राकर्तिक सौंदर्य एवं सुन्दरता की एक झलक
मौसम का सुन्दर नजारा

छोलिया नृत्य - इस अंचल का सबसे अधिक चहेता नृत्य 'छौलिया' है

"चितय गोल ज्यू कुमाऊं में न्याय देवता के रूप में पूजे जाते हैं गोल ज्यू"
कोणार्क के सूर्य मन्दिर के बाद कटारमल का यह सूर्य मन्दिर दर्शनीय है.

देवभूमि के ऐसे ही रमणीय स्थानों में बाबा नीम करोली महाराज का कैची धाम है.
जागेश्वर उत्तराखंड का मशहूर तीर्थस्थान माना जाता है। यहां पे 8 वीं सदी के बने 124 शिव मंदिरों का समूह है जो अपने शिल्प के लिये खासे मशहूर हैं। इस स्थान में सावन के महीने में शिव की पूजा करना अच्छा माना जाता है। अल्मोड़ा से जागेश्वर की दूरी लगभग 34 किमी. की है।
अल्मोड़ा की प्रसिद्ध परंपरागत बाल मिठाई.

यह मशहूर “
ये एक तरह का पेडा होता है जिसे मावे से बनाया जाता है। फोटो में आप जो पान जैसी मिठाई देख रहे हैं वही है सिंगोड़ी। दरअसल इस मिठाई की खासियत ये है कि इसे सिंगोड़ी के पत्ते में लपेटकर रखा जाता है।
इस मिठाई को बनाने के लिए पेडे को नौ से दस घंटे तक पत्ते में लपेट कर रखा जाता है।जिसके बाद पत्ते की खुशबु पेडे में आ जाती है। यही खुशबु इस मिठाई की पहचान है।

विश्वविद्यालय से न्यू इन्द्र कालोनी खत्याड़ी अल्मोड़ा का परिद्रिश्य.

"इन्द्रधनुस" सुरूज की किरण जब पानी की बूंद लेकर के गुजरे तब वो किरण अपने सात रंग की छटा ले इन्द्रधनुस के रूप में उभरती है | यह अदभुत नजारा देखें बिना आप नहीं रह सकते |